Sunday 19 July 2020

“मार्क्‍सवादी अध्‍ययन चक्र” के नाम पर बाँटे जा रहे अज्ञान, मूर्खता और झूठ का आलोचनात्‍मक विवेचन


साथियो,
हम दिल्‍ली विश्‍वविद्यालय का एक मार्क्‍सवादी अध्‍ययन समूह हैं, जो कि करीब डेढ़ दशकों से दिल्‍ली विश्‍वविद्यालय में मार्क्‍सवाद-लेनिनवाद के अध्‍ययन और साथ ही उसके विचारों के प्रचार-प्रसार में लगे रहे हैं। हमें हाल ही में पता चला कि अशोक कुमार पाण्‍डेय नाम का एक छद्म बुद्धिजीवी मार्क्‍सवाद पर ऑनलाइन अध्‍ययन चक्र चलाने के नाम पर भयंकरतापूर्ण अज्ञान और मूर्खता की बातों को फैला रहा है और मार्क्‍सवाद के साथ-साथ दर्शन और इतिहास के विषय में भी उल्‍टी-सीधी बातें फैला रहा है। उसके ये व्‍याख्‍यान मूर्खताओं के साथ-साथ झूठों से भी भरे हुए थे। हमने उसके इन तथाकथित अध्‍ययन चक्रों को आलोचना के लिए इस वजह से उठाया क्‍योंकि वह विश्‍वविद्यालय के अन्‍दर और बाहर संजीदा युवाओं और बुद्धिजीवियों के बीच मार्क्‍सवाद की एक बेहद विकृत किस्‍म की समझदारी बना रहा था। अगर ऐसा न होता तो ऐसे बौने करियरवादी की आलोचना करने की कोई ज़रूरत नहीं होती। लेकिन एक मार्क्‍सवादी अध्‍ययन समूह होने के कारण हमने मार्क्‍सवाद  के इस मूर्खतापूर्ण विकृतिकरण का खण्‍डन करना अपना कर्तव्‍य समझा।
जब हमने यह आलोचना लिखी तो कई लोगों ने छह किश्‍तों में लिखी गयी इस आलोचना को एक स्‍थान पर करके पेश करने की मांग की। इसी मांग के मद्देनज़र हमें इस पूरी आलोचना को एक स्‍थान पर पेश कर रहे हैं। इसके लिए हमने 'पोलेमिक' फोरम की सहायता ली है। हम उनका शुक्रिया अदा करना चाहेंगे। उम्‍मीद है, जिन पाठकों को अलग-अलग किश्‍तें ढूंढ कर पढ़नी पड़ रही थीं, अब उन्‍हें कोई असुविधा नहीं होगी।
क्रान्तिकारी सलाम के साथ,
हण्‍ड्रेड फ्लावर्स मार्क्सिस्‍ट स्‍टडी सर्किल, दिल्‍ली विश्‍वविद्यालय


इस आलोचना की पीडीएफ फाइल इस लिंक से डाउनलोड करें 

अगर आप इन किश्‍तों को ऑनलाइन पढ़ना चाहते हैं तो इन लिंक से पढ़ सकते हैं 

पहली किश्‍त
दूसरी किश्‍त
तीसरी किश्‍त 
चौथी किश्‍त 
पांचवी किश्‍त 
छठी किश्‍त



“मार्क्‍सवादी अध्‍ययन चक्र” के नाम पर बाँटे जा रहे अज्ञान, मूर्खता और झूठ का आलोचनात्‍मक विवेचन - छठी किश्‍त


वेदान्‍त को अन्‍धकार में धकेलते हुए दर्शन और इतिहास के साथ पाण्‍डे ने कैसे किया दुराचार!
(अशोक कुमार पाण्‍डे द्वारा मार्क्‍सवादी अध्‍ययन चक्र में फैलायी जा धुन्‍ध का आलोचनात्‍मक विवेचन) (छठां भाग)
·         हण्‍ड्रेड फ्लावर्स मार्क्सिस्‍ट स्‍टडी ग्रुप, दिल्‍ली विश्‍वविद्यालय, दिल्‍ली

पाण्‍डे जी काफी दिनों बाद वापस आये हैं! वेदान्‍त पर बोलने के लिए! 35 मिनट का वीडियो बनाया है उन्‍होंने। लेकिन उसमें 15 मिनट उन्‍होंने हमारे ''गैंग'' के बारे में बोला है! जैसा कि उन्‍होंने पिछली बार भी किया था, अपने नरभसा जाने को छिपाने के लिए उन्‍होंने हमारे ऊपर हमला करने का रास्‍ता अपनाया है और उसमें भी उन्‍होंने हमारी आलोचनाओं में अब तक उठाए गए एक भी प्रश्‍न का जवाब नहीं दिया है, बल्कि कुत्‍साप्रचार और गाली-गलौच के अपने पुराने तरीके का इस्‍तेमाल ही किया है, जिसमें वह अभ्‍यास करते-करते माहिर हो चुके हैं! हालांकि इस पूरे दौरान वह दावा करते रहे कि हम लोग तो उनके लिए कोई मायने ही नहीं रखते, हम तो नाचीज़ हैं, हमसे वह एक शब्‍द भी नहीं कहना चाहते और इसके बाद 35 मिनट में से 15 मिनट तक वह हमारे बारे में ही दांत पीस-पीसकर बोलते रहते हैं! हम समझ सकते हैं उनके दिल की हालत! किसी दलाल दुकानदार के धंधे पर डण्‍डा पड़े तो वह इसी प्रकार पिनपिनाता है!

Sunday 14 June 2020

“मार्क्‍सवादी अध्‍ययन चक्र” के नाम पर बाँटे जा रहे अज्ञान, मूर्खता और झूठ का आलोचनात्‍मक विवेचन - पांचवी किश्‍त


इस तरह आत्‍मग्रस्‍त मूढ़ता के रथ ने रौंद दिया बौद्ध दर्शन और इतिहास को
(अशोक कुमार पाण्‍डे द्वारा मार्क्‍सवादी अध्‍ययन चक्र में फैलायी जा धुन्‍ध का आलोचनात्‍मक विवेचन)
(पांचवी किश्‍त)
·        हण्‍ड्रेड फ्लावर्स मार्क्सिस्‍ट स्‍टडी ग्रुप, दिल्‍ली विश्‍वविद्यालय, दिल्‍ली

अब हम पाण्‍डे जी के पांचवे वीडियो की आलोचनात्‍मक विवेचना पर आते हैं।
पाण्‍डे जी पांचवे वीडियो में थोड़ा 'कांशस' हो गये हैं। हालांकि इस सचेत होने और नरभसाने को उन्‍होंने आक्रामकता के पर्दे में छिपाने की काफी कोशिश की है। लगभग आधे घण्‍टे के वीडियो में पाण्‍डे जी ने कम-से-कम 15 मिनट हवाबाज़ी पर खर्च किये हैं। जैसा कि हमने पहले भी बताया है, पाण्‍डे जी के वीडियो चिप्‍स के पैकेट के समान होते हैं। उसमें सड़े चिप्‍स के अलावा आधी जगह बदबूदार गैस भरी होती है। यह वीडियो भी इस आम नियम का अपवाद नहीं है। पाण्‍डे जी काम की बात करने की बजाय बार-बार हमें याद दिलाते हैं कि उनसे गलती हो सकती है, उन्‍हें ठीक किया जाय, क्‍योंकि सीखना तो एक दो-तरफा प्रक्रिया होती है; कई लोग गुरू-घण्‍टालों के समान जटिल शब्‍दावली में बात करते हैं, मार्क्‍स व हेगेल वगैरह को कोट करते हैं, और अपने ज्ञान से लोगों को आतंकित करते हैं, यह तो कोई मार्क्‍सवादी तरीका नहीं है। पूंजीवादी राज्‍यसत्‍ता के एक चाकर के रूप में पाण्‍डे जी बिल्‍कुल पूंजीवादी राज्‍यसत्‍ता जैसी ही बातें कर रहे हैं! जब पूंजीवादी राज्‍यसत्‍ता किसी से आतंकित होती है, तो वह सबके लिए ही उस चीज़ को आतंककारी बता देती है! उसी प्रकार पाण्‍डे जी जिन आलोचनाओं से आतंकित हो गये हैं, उन्‍हें बौद्धिक आतंककारी करार देने की कोशिश कर रहे हैं! उनका कहना है कि इनको पढ़कर कुछ समझ नहीं आता है, बस आतंक पैदा होता है! अपने आतंकित होने को वह पूरे हिन्‍दी जगत पर ही आरोपित किये दे रहे हैं। कोई ताज्‍जुब की बात नहीं है, ज्‍यादातर मूर्खों को यह लगता ही है कि सभी मूर्ख हैं।

“मार्क्‍सवादी अध्‍ययन चक्र” के नाम पर बाँटे जा रहे अज्ञान, मूर्खता और झूठ का आलोचनात्‍मक विवेचन - चौथी किश्‍त

पाण्‍डे के प्रवचन से और गहराया जहालत का अंधेरा
(अशोक कुमार पाण्‍डे द्वारा मार्क्‍सवादी अध्‍ययन चक्र में फैलायी जा रही धुन्‍ध का आलोचनात्‍मक विवेचन)
(चौथी किश्‍त)
·         हण्‍ड्रेड फ्लावर्स मार्क्सिस्‍ट स्‍टडी ग्रुप, दिल्‍ली विश्‍वविद्यालय, दिल्‍ली

पिछले तीन वीडियो में हम देख चुके हैं कि पाण्‍डे जी की मार्क्‍सवाद की समझदारी कितनी है और थोड़ा मुज़ाहिरा हमने इस बात का भी देखा कि उन्‍हें भारतीय दर्शन के बारे में क्‍या पता है। इस वीडियो में हम इस तकलीफदेह सफर को जारी रखेंगे और अधिक विस्‍तार से देखेंगे कि पाण्‍डे जी भारतीय दर्शन के बारे में क्‍या समझदारी रखते हैं।
पाण्‍डे जी हमेशा की तरह शुरुआत कुछ लोगों द्वारा पूछे गये सवालों का जवाब देने से करते हैं। किसी ने उनसे पूछा है कि मार्क्‍स यूरोपीय परिस्थितियों में पैदा हुए थे और उनकी चेतना और ज्ञान भी उसी के अनुसार निर्धारित हुआ था। भारतीय चेतना तो भारतीय परिस्थितियों के अनुसार बनेगी, तो ऐसे में मार्क्‍स के सिद्धान्‍तों को, जो कि यूरोपीय परिस्थितियों के अनुसार बने हैं, भारत में कैसे लागू किया जा सकता है।
सवाल तो यह किसी नये युवा साथी के अनुसार अच्‍छा है और इसका बहुत ही अच्‍छा जवाब दिया जा सकता है। लेकिन जब तक आप ऐसा सोचते हैं, तब तक पाण्‍डे जी अपनी मूर्खता का उस्‍तरा सवाल पूछने वाले के मस्तिष्‍क को गंजा करने के लिए अपने झोले में से निकाल चुके होते हैं। आइये देखते हैं कि वह इस सवाल का क्‍या जवाब देते हैं।

“मार्क्‍सवादी अध्‍ययन चक्र” के नाम पर बाँटे जा रहे अज्ञान, मूर्खता और झूठ का आलोचनात्‍मक विवेचन - तीसरा भाग

''ज्ञान-धुरन्‍धर'' पाण्‍डे ने भारतीय दर्शन का कचड़ा कैसे किया?
(अशोक कुमार पाण्‍डे द्वारा मार्क्‍सवादी अध्‍ययन चक्र में फैलायी जा धुन्‍ध का आलोचनात्‍मक विवेचन)
(तीसरा भाग)
·        हण्‍ड्रेड फ्लावर्स मार्क्सिस्‍ट स्‍टडी ग्रुप, दिल्‍ली विश्‍वविद्यालय, दिल्‍ली

अब हम पाण्‍डे जी के मार्क्‍सवादी अध्‍ययन चक्रके तीसरे वीडियो पर आते हैं।
तीसरे वीडियो की शुरुआत में ही पाण्‍डे जी बताते हैं कि किताबें पढ़ने का कोई विकल्‍प नहीं है और इस अध्‍ययन चक्र के ज़रिये उनका मकसद केवल मार्क्‍सवाद की एक मोटी समझदारी बनानी है और माहौल बनाना है। हम पहली दो किश्‍तों में देख चुके हैं कि पाण्‍डे जी कैसा माहौल बना रहे हैं। बल्कि कहना चाहिए कि यह व्‍यक्ति हिन्‍दी जगत में जो थोड़ा माहौल है मार्क्‍सवाद को जानने-समझने का, उसे भी खराब कर रहा है।
तीसरे वीडियो में भी इसने बुरी तरह से माहौल खराब किया है। आइये देखते हैं।

“मार्क्‍सवादी अध्‍ययन चक्र” के नाम पर बाँटे जा रहे अज्ञान, मूर्खता और झूठ का आलोचनात्‍मक विवेचन - दूसरा भाग


मार्क्‍सवाद के एक आत्‍मग्रस्‍त अज्ञानी ''शिक्षक'' द्वारा मार्क्‍सवाद के विकृतीकरण के विरुद्ध
(अशोक कुमार पाण्‍डे द्वारा मार्क्‍सवादी अध्‍ययन चक्र में फैलायी जा रही धुन्‍ध का आलोचनात्‍मक विवेचन)
(दूसरा भाग)

·        हण्‍ड्रेड फ्लावर्स मार्क्सिस्‍ट स्‍टडी ग्रुप, दिल्‍ली विश्‍वविद्यालय, दिल्‍ली

अब हम पाण्‍डे जी के “मार्क्‍सवादी अध्‍ययन चक्र” के दूसरे वीडियो पर आते हैं।
पहले वीडियो में पाण्‍डे जी ने जिस अज्ञानता प्रसार का आरम्‍भ किया था, उसे वह दूसरे वीडियो में भी जारी रखते हैं।
दूसरे वीडियो में शुरुआत में ही पाण्‍डे जी एक किताब का नाम सुझाते हैं जिसे पढ़ना चाहिए। वह कहते हैं कि के. दामोदरन की एक पुस्‍तक है 'भारतीय दर्शन में क्‍या जीवित क्‍या मृत'। पहली बात तो यह है कि यह पुस्‍तक देवीप्रसाद चट्टोपाध्‍याय की है, न कि के. दामोदरन की। सम्‍भवत: बाद में पाण्‍डे जी को किसी ने इस गलती के बारे में बताया होगा, तो आगे के वीडियो में वह इसे ठीक करते हुए कहते हैं कि वह पुस्‍तक तो देवीप्रसाद चट्टोपाध्‍याय की है, के. दामोदरन की पुस्‍तक का नाम है 'भारतीय दर्शन परम्‍परा'यही इनकी अदा है! यह अगर कोई गलती भी ठीक करने चलते हैं, तो दूसरी ग़लती किये बिना ऐसा नहीं कर पाते। के. दामोदरन की पुस्‍तक का नाम 'भारतीय दर्शन परम्‍परा' नहीं है, बल्कि 'भारतीय चिन्‍तन परम्‍परा' है, जो पहली बार 1967 में अंग्रेजी में 'Indian Thought: A Critical Survey' के नाम से प्रकाशित हुई थी। लेकिन पाण्‍डे जी का अन्‍दाज़ ही कुछ ऐसा है!

“मार्क्‍सवादी अध्‍ययन चक्र” के नाम पर बाँटे जा रहे अज्ञान, मूर्खता और झूठ का आलोचनात्‍मक विवेचन - पहला भाग


एक करियरवादी, आत्‍मग्रस्‍त, अपढ़ बौद्धिक बौने द्वारा मार्क्‍सवाद के विकृतीकरण और इसे लेकर फैलायी जा रही धुन्‍ध के विरुद्ध
(अशोक कुमार पाण्‍डे द्वारा “मार्क्‍सवादी अध्‍ययन चक्र” के नाम पर बाँटे जा रहे अज्ञान, मूर्खता और झूठ का आलोचनात्‍मक विवेचन)
(पहला भाग)

– हण्‍ड्रेड फ्लावर्स मार्क्सिस्‍ट स्‍टडी ग्रुप, दिल्‍ली विश्‍वविद्यालय, दिल्‍ली

विज्ञान का मसला एक गम्‍भीर मसला होता है। इसमें व्‍यक्तिवाद, करियरवाद, आत्‍मग्रस्‍तता की कोई गुंजाइश नहीं होती है। मार्क्‍सवाद पर कोई भी विमर्श एक वैज्ञानिक विमर्श होता है जो यह माँग करता है कि आप जो भी कहें उसे तथ्‍यों और तर्कों से पुष्‍ट करें और साथ ही उन तथ्‍यों और तर्कों की एक सही व्‍याख्‍या पेश करें। मार्क्‍सवाद एक विश्‍व-दृष्टिकोण है, एक पहुँच और पद्धति है जो हमें हर वस्‍तु अथवा परिघटना को देखने का नज़रिया देता है। साथ ही, यह समाज की गति के नियमों की एक सुस्‍पष्‍ट समझदारी पेश करता है और बताता है कि आज तक समाज का विकास गति के किन नियमों के अधीन हुआ है और आगे उसके विकास की क्‍या सम्‍भावित दिशाएँ हो सकती हैं। यह क्रान्ति का विज्ञान है।